@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: सार्वजनिक भट्टी अभिनंन्दन

बुधवार, 1 जून 2011

सार्वजनिक भट्टी अभिनंन्दन

भ्रष्टाचार के विरुद्ध चली मुहिम फिर कानून के गलियारों में फँस गई है। अन्ना हजारे ने पिछले दिनों लोकपाल बिल  लाने और उसे कानून बनाने के मुद्दे पर दिल्ली के जंतर-मंतर पर अनशन किया तो लोगों को लगने लगा था कि अब एक अच्छी शुरुआत हो रही है। यह अभियान परवान चढ़ा तो निश्चित रूप से भ्रष्टाचार के निजाम को समाप्ति की ओर ले जाएगा। लोगों को उस से निजात मिलेगी। इसी से उस के लिए पर्याप्त जनसमर्थन प्राप्त हुआ। नतीजो में सरकार को झुकना पड़ा और लोकपाल बिल का मसौदा तैयार करने को संयुक्त समिति बनी और काम में जुट गई। अभियान ब्रेक पर चला गया। ब्रेक में बिल बन रहा है। बिल बनने के पहले ही खबरें आने लगीं कि सिविल सोसायटी के प्रतिनिधि पाक-साफ नहीं हैं। मतभेद की बातें होने लगीं। लेकिन बिल निर्माण के लिए बैठकें होती रहीं। कई मुद्दे उछाले गए, अब ताजा मुद्दा है कि प्रधानमंत्री को इस कानून की जद से बाहर रखा जाए। यह भी कि न्यायाधीशों को उस की जद से बाहर रखा जाए या नहीं। इस बीच भारत सरकार ने मोस्ट वांटेड अपराधियों की सूची पाकिस्तान को भेजी। पता लगा कि सूची पुरानी है। उसे भेजे जाने के पहले ठीक से जाँचा ही नहीं गया। कुछ ऐसे लोगों के नाम भी उस में चले गए हैं जो भारत में गिरफ्तार हो चुके हैं और उन में से कुछ एक तो जमानत पर छूट भी चुके हैं। अब यह लापरवाही है या इस में भी कोई भ्रष्टाचार है। इस का पता लगाना आसान नहीं है। 

मेरी जानकारी में एक स्थानीय मामला है। इस मामले में मुलजिम की जमानत हुई। उस पर कई मुकदमे थे। कुछ में वह अन्वीक्षा के दौरान लंबे समय तक  जेल में था। गवाहों के बयान होने में इतना समय लग गया कि आखिर उस के वकील ने उसे सलाह दी कि वह पहले ही इतने दिन जेल में रह चुका है कि यदि जुर्म स्वीकार कर ले तो भी अदालत को उसे छोड़ना पड़ेगा, वह पहले ही सजा से अधिक जेल में रह चुका है। उस ने जुर्म स्वीकार किया और जेल से छूट कर आ गया। पुलिस ने नए मुकदमे बनाए और उसे फिर जेल पहुँचा दिया। पता लगा कि उस पर उस दौरान चोरी करने का आरोप है जिस दौरान वह जेल में था। अदालत ने उस की जमानत ले ली, मुकदमा अभी चल रहा है। पुलिस ने उसे फिर नए मुकदमे में गिरफ्तार किया और जेल पहुँचा दिया। पुलिस का पिछला रिकार्ड देख कर अदालत ने इस बार भी जमानत ले ली। उसे छोड़े जाने का हुक्म जेल पहुँचा तो जेलर ने उसे बताया कि इस मुकदमे में तो छूट जाओगे पर पुलिस ने एक और मुकदमा उस पर बना रखा है और जेल में उस का वारंट मौजूद है इसलिए उसे पुलिस के हवाले किया जाएगा। अभियुक्त परेशान हुआ। उस ने जेलर से याचना की कि उसे पुलिस को न सौंपा जाए। वह छूट जाएगा तो जमानत का इंतजाम कर लेगा। पुलिस को दे दिया गया तो जमानत में परेशानी होगी। जेलर ने दया कर के उसे पुलिस के हवाले करने के बजाय रिहा कर दिया और दया की कीमत वसूल ली। वारंट के मामले में जेलर ने जवाब दे दिया कि वारंट जेल पहुँचने के पहले ही अभियुक्त छोड़ा जा चुका था। 
स भ्रष्टाचार की खबर बहुत लोगों को है लेकिन इस पर कोई कार्यवाही होगी इस मामले में किसी को संदेह नहीं है। अब जेलर कह सकता है कि पुलिस के वारंट पर कैसे भरोसा किया जाए? पुलिस तो पाकिस्तान तक को गिरफ्तार और जमानत पर छूटे लोगों को मोस्ट वांटेड की लिस्ट में शामिल कर लेती है। जेल और पुलिस महकमों में इस तरह की बातें होती रहती हैं। इन पर ध्यान देने की कोई परंपरा नहीं है और डालने की किसी की इच्छा भी नहीं है। पुलिस का रोजनामचा हमेशा देरी से चलता है। इस में बड़ा आराम रहता है। नहीं पहचाने गए अभियुक्तों के नाम तक प्रथम सूचना रिपोर्ट में आसानी से घुसेड़े जा सकते हैं। 

मारे पास हर समस्या का स्थाई हल है कि उस समस्या पर कानून बना दिया जाए। पहले  बाल विवाह होते थे। उसे कानून बना कर अपराध घोषित कर दिया गया। बाल विवाह समाप्त हो गए। महिलाओं पर अत्याचार हो रहे थे। आईपीसी में धारा 498-ए जोड़ दी गई, महिलाओं पर अत्याचार समाप्त हो गए। अब पुरुषों पर अत्याचारों की खबरें आने लगीं। भ्रष्टाचार के कारण सरकार की बदनामी होने लगी तो भ्रष्टाचार निरोधक कानून बना। सोचा भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा। पर भ्रष्टाचार अनुमान से अधिक कठिन बीमारी निकली जो कानून से मिटने के बजाए बढ़ती नजर आयी। उस के उलट उस ने भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए बनाए गए विभाग को ही अपनी जद में ले लिया। यह बहुत आसान था। पहले भ्रष्टाचारी को रंगे हाथों पकड़ो, फिर उसे हलाल करो। आरोप पत्र में उस के बरी होने के लिए सूराख छोड़ो। सस्पेंड आदमी बाहर रह कर काम-धंधा कर कमाता रहे और कुछ बरस बाद बरी हो कर पूरी तनख्वाह ले कर फिर से  नौकरी पर आ जाए। इस से कितनों का ही पेट पलने लगा।

भ्रष्टाचार कानून से मिटता नजर नहीं आता। वह कानून से और मोटा होता जाता है। लोगों को लग रहा है कि इस से भ्रष्टाचार मिटेगा नहीं तो कम से कम कम जरूर हो जाएगा। उधर भ्रष्टाचारी सोच रहे हैं कि कानून हमारा क्या कर लेगा? पहले ही कौन सा कर लिया जो अब करेगा। वैसे भी भ्रष्टाचारी को भले ही कानून कुछ साल रगड़ ले लेकिन समाज में तो वह इज्जत पा ही जाता है। उस के लड़के को शादी में अच्छा दहेज मिलता है। उस की लड़की से शादी करने को कोई भी तैयार हो जाता है। वह हजारों को पार्टी देता है। पुलिस, कलेक्टर और मंत्री उन शादियों में शिरकत करते हैं। ऐसे में किसे परवाह है कानून की? हाँ समाज भ्रष्टाचारियों के साथ उठना बैठना बंद करे। उन के साथ रोटी-बेटी का व्यवहार बंद करे। 100-200 मेहमानों से अधिक की पार्टियाँ और भोज गैर कानूनी घोषित किए जाएँ। उन का आयोजन करना अपराध घोषित किया जाए। जनता भ्रष्टाचारियों का सार्वजनिक जसपाल भट्टी अभिनंदन (?) करना आरंभ करे तो कुछ उम्मीद दिखाई दे सकती है। 

14 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जब तक सार्थक निष्कर्ष नहीं आते हैं, व्यग्र हो प्रतीक्षा ही कर सकते हैं हम सब।

Rahul Singh ने कहा…

प्रभावी और बहुमत पर आदर्श का अंकुश.

डा० अमर कुमार ने कहा…

बिना व्यक्तिगत स्तर पर भ्रष्टाचार का निषेध किये, कोई कानून इस पर काबू नहीं पा सकता है ।
भ्रष्टाचार पर नज़र रखने वाली एजेन्सियाँ ( पुलिस, न्यायपालिका इत्यादि ) स्वयँ इसकी रोगी हैं ।
यहीं पर यह सवाल उठता है कि जनलोकपाल विधेयक के गठन समिति में धँसे लोग किस हैसियत से जनता की नुमाइन्दगी कर रहे हैं, क्या गारँटी है कि वह बन्दरबाँट की उपज नहीं हैं ? सबकुछ मीडिया ( जो स्वयँ ही बिकाऊ है ) के सार्टीफ़िकेट और कवरेज़ के भरोसे है ?
यह शँका भी उठनी स्वाभाविक है कि आख़िर लोकपाल के चयन में जनता की भागीदारी कहाँ है, यह तो अपने पीछे भीड़ इकट्ठी की क्षमता पर जा गिरी है । यह भी पारदर्शी नहीं हैं कि, जनलोकपाल महोदय के कलापों की ज़वाबदेही किसके प्रति होगी... क्या वह स्वयँ ही भारतीय लोकतँत्र के नये चरवाहे नहीं बन जायेंगे ?

Arvind Mishra ने कहा…

अब तो केवल भट्टी से ही उम्मीद है जो भ्रष्टाचार की दहकती भट्टी को अपने व्यंग -कटाक्ष की पिचकारियों से शांत कर सकते हैं :)

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

बहुत कठिन है भ्रष्टाचार उन्मूलन की डगर। लाखों अवरोध हैं क्योंकि इसे दूर करने के उपाय उन्हें ही करने हैं जिन्हें इससे सर्वाधिक लाभ है।

समीक्षा ने कहा…

बेशक रास्ता कठिन है ..परन्तु ऐसे ही प्रयासों से कुछ आशा की किरण देखाई देती है|

Shah Nawaz ने कहा…

हमें तो भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए आपका बताया जुगाड़ ज्यादा बढ़िया लाग रहा है...



प्रेम रस

Khushdeep Sehgal ने कहा…

ये तो होना ही था...
अन्ना की काट के लिए सरकार को बाबा रामदेव मिल गए हैं...

जय हिंद...

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

अमरीका दुनिया का एक ऐसा लोकतांत्रिक देश है जिसमें हर अपराध के लिए कड़ी से कड़ी सज़ाओं का प्रावधान है इसके बावजूद यहां के अपराध आंकड़े सदाबहार हैं.

आपने सही लिखा है कि शायद ही ये लोग समझ पाएं कि कानून बना देने भर से ही अपराध समाप्त हो गए होते तो भारत में थाने/अदालतें कभी के बंद किए जा चुके होते...

.. पर हमारे यहां सभी कुछ एक एजेंडे के तहत किया जाता है न फिर भले ही वह आमरण अनशन ही क्यों न हों

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

लोग ज्यादा ही उम्मीदें लगाये बैठे हैं आइकॉंस से - चाहे अण्णा हों या रामदेव!

बेनामी ने कहा…

बेहतर बात उठाई गई है...यही हश्र होने हैं...

राज भाटिय़ा ने कहा…

भ्रष्टाचार समाप्त तभी हो सकता हे जब सब एक सा सोचे,हम सब चाहते हे कि दुसरा सुधर जाये मेरा क्या? युरोप की तरह से भारत मे भी हर आदमी की आमदन के हिसाब से उसे देखा जाये ओर उस की जायदाद का पुरा हिसाब किताब सरकार को होना चाहिये , कि दो चार साल मे कोई कैसे अरबो पति बन जाता हे, एक मंत्री पांच सालो मे केसे करोडो अरबो जमा कर लेता हे? कैसे उस के भुखे नंगे रिश्ते दार कुछ ही सालो मे करोड पति बन जाते हे... कानून बन देने से नही कुछ हो सकता, उस पर कडाई से पालन भी किया जाये, काम चोरो ओर भ्रष्टाचारियो को अंदर किया जाये उन के धन का स्रोत का पता लगाया जाये, शिफ़ारिश करने बाले को बिना जमानत अंदर किया जाये

Abhishek Ojha ने कहा…

मुझे तो डॉ साहब की बात ही सही लगती है:"बिना व्यक्तिगत स्तर पर भ्रष्टाचार का निषेध किये, कोई कानून इस पर काबू नहीं पा सकता है ।"

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

सिस्टम से व्यक्तिगत स्तर से नहीं लड़ा जा सकता. उससे लड़ने के लिये उतने ही बड़े दूसरे सिस्टम की जरूरत है.
नये कानूनों की जरूरत समय और आवश्यकताओं के अनुरूप पड़ती ही है.
कानून का दुरुपयोग लागू कराने वाले ही कराते हैं.
यदि बाबा नहीं तो फिर कौन? कोई अधिक बेहतर विकल्प है क्या?