@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: शमशेर पर दो दिवसीय राष्ट्रीय साहित्यिक संगोष्ठी

शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

शमशेर पर दो दिवसीय राष्ट्रीय साहित्यिक संगोष्ठी

ब्दों के कुछ समूह हमारी चेतना पर अचानक एक हथौडे़ की तरह पड़ते हैं, और हमें बुरी तरह झिंझोड़ डालते हैं। दरअसल हथौडे़ की तरह पड़ने और बुरी तरह झिंझोड़ डालने वाली उपमाओं के पीछे होता यह है कि इन शब्दों ने हमारे सोचने के तरीके पर कुठाराघात किया है, हमें हमारी सीमाएं बताई हैं, और हमारी छाती पर चढ़ कर कहा है, देखो ऐसे भी सोचा जा सकता है, ऐसे भी सोचा जाना चाहिए। जाहिर है कविता इस तरह हमारी चेतना के स्तर के परिष्कार का वाइस बनती है।
विकुमार का उक्त कथन उन के अपने कविता पोस्टरों का आधार बनी कविताओं के लिए है। लेकिन शमशेर बहादुर सिंह की लगभग तमाम कविताओं पर खरा उतरता है। शमशेर ऐसे ही थे। सीधे अपने पाठक और श्रोता की चेतना को झिंझोड़ डालते थे, व सोचने पर बाध्य हो जाता था कि वह कहाँ गलत था और सही क्या था। 
ह नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल, फैज हमद फैज, गोपाल सिंह नेपाली और अज्ञेय का जन्म शताब्दी वर्ष है, हम इस बहाने उन के साहित्य से और उस के माध्यम से पिछली शती के भारतीय समाज से रूबरू हो रहे हैं। इसी क्रम में राजस्थान साहित्य अकादमी और 'विकल्प' जनसांस्कृतिक मंच कोटा 12-13 फरवरी को शमशेर बहादुर सिंह पर एक राष्ट्रीय साहित्यिक संगोष्ठी का आयोजन कर रहा है। निश्चित रूप से इस अवसर से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। जो मित्र-गण इस में सम्मिलित हो सकते हों वे सादर आमंत्रित हैं -


निमंत्रण को ठीक से पढ़ने के लिए उस पर क्लिक करें।

5 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

इन कवियों ने जनमानस को झिंझोड़ कर रख दिया है।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

आपके माध्यम से ही हाजिर रहेंगे..

Abhishek Ojha ने कहा…

शमशेर बहादुर सिंह से यार आता है: 'भोर का नभ... जादू टूटता है इस उषा का अब सूर्योदय हो रहा है' स्कूल की किताब में था.

Udan Tashtari ने कहा…

रिपोर्टिंग का आपकी कलम से इन्तजार रहेगा.

डॉ० डंडा लखनवी ने कहा…

व्दिवेदी जी!
आयोजन की सफलता के लिए मंगलकामनाएं....। हिंदी की प्रगति के किए यह सराहनीय प्रयास है।
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी