@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: रोशनियाँ कैद नहीं होतीं

रविवार, 9 जनवरी 2011

रोशनियाँ कैद नहीं होतीं


जब जनआकांक्षाओं को पूरा करने में 
असमर्थ होने लगती हैं, सत्ताएँ 

जब उन के वस्त्र
एक-एक कर उतरने लगते हैं,
जब होने लगता है उन्हें, अहसास 
कि उन के अंग, जिन्हें वे छिपाना चाहते हैं
अब छिपे नहीं रहेंगे 

तो सब से पहले 
वे टूट पड़ती हैं 
रोशनियों पर

कि रोशनियाँ ही तो हैं 
जो लोगों को दिखाती हैं, ये सब
कि कैद कर दी जाती हैं, रोशनियाँ
तब दीखता है, अंधेरा ही अंधेरा

तुम क्या महसूस नहीं करते
कि ऐसा ही अंधेरा है, आजकल 
वह आ रहा है, आसमान पर 
एक दिशा से
और गहराता जा रहा है 
दसों दिशाओं पर

पर नहीं जानते वे लोग 
जो रोशनियों को कैद करने में जुटे हैं
कि रोशनी को कैद कर दो 
तो वह ताप बढ़ाती है
और एक दिन फूट पड़ती है
एक विस्फोट के साथ
  • दिनेशराय द्विवेदी

15 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

तुम क्या महसूस नहीं करते
कि ऐसा ही अंधेरा है, आजकल
वह आ रहा है, आसमान पर
एक दिशा से
और गहराता जा रहा है
दसों दिशाओं पर
आम आदमी तो इसे कब से महसुस कर रहा हे, लेकिन जो इस का कारण हे वो नही महसुस कर रहे, बहुत सुंदर रचना लिखी, धन्यवाद

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

न रोशनियाँ कैद होंगी, न आवाजें।

अपेक्षाओं पर तो खरा उतरना ही होगा।

Rahul Singh ने कहा…

तरस ही आता है रोशनी को कैद करने की सोचने वाले सिसिफसों पर.

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

रोशनी को कोई कैद नहीं कर सकता,बढियां रचना,शुभकामनायें.

Taarkeshwar Giri ने कहा…

कि रोशनियाँ ही तो हैं
जो लोगों को दिखाती हैं, ये सब

bahut hi gambheer bat kahi hai apne.

निर्मला कपिला ने कहा…

पर नहीं जानते वे लोग
जो रोशनियों को कैद करने में जुटे हैं
कि रोशनी को कैद कर दो
तो वह ताप बढ़ाती है
और एक दिन फूट पड़ती है
एक विस्फोट के साथ
कौन कैद कर सकता है रोशनी को? वो खुद ही इसके विस्फोट मे भस्म हो जायेंगे जो इसे रोकेंगे। सुन्दर रचना के लिये बधाई।

Satish Saxena ने कहा…

बहुत खूब भाई जी ....अभिव्यक्तियों के लिए नया अंदाज़...
शुभकामनायें !

विष्णु बैरागी ने कहा…

मुगालते में होते हैं वे
जो सोचते हैं कि
कैद कर ली उन्‍होंने
रोशनियॉं।

कैद हो जाते हैं
दरअसल वे खुद
अपने इस अँधेरे सोच के
कि
कैद कर ली है उन्‍होंने
रोशनियॉं।

सुगबुगाती रहती है
रोशनियॉं
सतह के नीचे
खदबदाता रहता है
जैसे लावा
ज्‍वालामुखी का

फूटता है लावा,
अकस्‍मात ही
बिना कहे

आती हैं,
ठीक ऐसे ही
रोशनियॉं
सतह से ऊपर,
और
रोशन करती
है जिन्‍दगियॉं।

नजर न आने का
मतलब नहीं होता
रोशनी का न होना।

रोशनी तो
सचाई है,
है हकीकत।

इससे अनजान
नादान लोग ही
पाल लेते हैं मुगालता
कि
करली है उन्‍होंने
कैद रो‍शनियॉं।

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

@ विष्णु बैरागी जी
आप की प्रतिक्रिया बेहतर कविता है। इस ने इस पोस्ट को बहुगुणित कर दिया है।

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

रोशनी पूंजी नहीं है,
जो तिजोरी में समाये।

वह खिलौना भी न जिसका, दाम हर गाहक लगाये।

--- नीरज की कविता याद आ गयी।

Satyendra PS ने कहा…

दिनेश जी आपने सही लिखा कि रोशनी कैद नहीं होती। हां, एक चीज और सामने आई कि जब रोशनी कैद करने की कोशिश की जाती है तो दिनेश जी के दर्द और गुस्से से बेहतरीन कविता निकलती है।

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

@सत्येन्द्र
सत्येन्द्र भाई,
मैं मूलतः कवि नहीं,न ही कविता लिखने का कोई सायास प्रयास करता हूँ। कभी कोई बात कहनी होती है तो इसी तरह शब्दों में निकल पड़ती है। इस पोस्ट की सब से बड़ी उपलब्धि तो विष्णु बैरागी जी की वह कविता है जो उन की टिप्पणी के रूप में इसी पोस्ट पर उपलब्ध है।

उम्मतें ने कहा…

आपकी और बैरागी जी की जुगलबंदी भा गई !

ghughutibasuti ने कहा…

रोशनी का सही काम है केवल सत्ता की उपलब्धियां दिखाए अन्यथा रोशनी को कैद कर दिया जाना चाहिए.
घुघूती बासूती

रवि कुमार, रावतभाटा ने कहा…

वाह जी...
क्या बेहतर कविता निकल ही जाती....