@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: कहाँ से मिल गई हम को ये बिजलियों की सिफ़त

शनिवार, 8 जनवरी 2011

कहाँ से मिल गई हम को ये बिजलियों की सिफ़त

र्वीले अतीत की सब लोग बात करते हैं। लेकिन अपने अतीत के गौरव की बात करते समय हमें इस बात पर तनिक भी लज्जा नहीं आती कि वे भी हम ही थे, जिन्हों ने अपने गौरव को मिट्टी में मिला दिया। ऐसी कौन सी बात थी, जिस ने हमारे गौरव को इस अंजाम तक पहुँचाया? और क्या उस चीज से हम अब भी निजात पा सके हैं? इसी बात को शायर शकूर 'अनवर' किस तरह कहते हैं? आप खुद ही देखिए -


ग़ज़ल
कहाँ से मिल गई हम को ये बिजलियों की सिफ़त
  • शकूर 'अनवर'

उठे  तो     सारे  जमाने  पे     छा  गए  हम  लोग
गिरे तो   ज़ात की पस्ती में    आ  गए  हम  लोग


जो  एक     जिन्से-मुहब्बत    हमारी  अपनी  थी
उसी को     बेच के   दुनिया में   खा गए हम लोग


हमारे     आबा-ओ-अजमाद    ने   जो   छोड़े   थे 
वो नक़्श     सारे के सारे     मिटा गए    हम लोग


हम   अपने आप के    दुश्मन   बने हुए हैं    यहाँ
खुद   अपनी राह में    काँटे बिछा गए    हम लोग


कहाँ से मिल गई हम को ये बिजलियों की सिफ़त
जिधर से निकले   वहीं घर   जला गए   हम लोग


निकल के   बहरे-मुहब्बत से   आजकल 'अनवर'
हवस के      अंधे कुवें      में समा गए     हम लोग


शकूर 'अनवर' कोटा के अजीम शायरों में से एक हैं, आप उन का परिचय यहाँ जान सकते हैं।

9 टिप्‍पणियां:

अजित वडनेरकर ने कहा…

बहुत खूब ग़ज़ल

राज भाटिय़ा ने कहा…

हम अपने आप के दुश्मन बने हुए हैं यहाँ
खुद अपनी राह में काँटे बिछा गए हम लोग

वाह अनवर साहब बहुत सुंदर गजल कही आप का धन्यवाद, दिनेश जी आप का भी बहुत बहुत धन्यवाद इस सुंदर गजल को ओर अनवर साहब् से मिलबाने के लिये

Rahul Singh ने कहा…

पहला मिसरा छाया रहे पूरी गजल पर.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

भारतीय मानसिकता और इतिहास के बारे में बड़ी गहन बात कह गये आप।

Mansoor ali Hashmi ने कहा…

क्या कहने शकूर अनवर साहब के, बहुत ख़ूब. उनके "हम लोग" कुछ यूं भी पसंद आ गए !

'द्रोण' जैसे 'गुरु' है तो यह तो होना है,
'अंगूठे' आज भी अपने कटा रहे हम लोग.

...आगे और भी है आत्म मंथन पर-
http://aatm-manthan.com

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

बढ़िया लगी! बस उर्दू शब्द कुछ कम ही समझ आये।

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

vaah bhayi jaan bhtrin andaaz men bhtrin prstutikaran bhut thik. akhtar khan akela kota rajsthan

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

@@
हम अपने आप के दुश्मन बने हुए हैं यहाँ
खुद अपनी राह में काँटे बिछा गए हम लोग...
बहुत खूब.

उम्मतें ने कहा…

बेहतरीन !