@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: कविता के अलावा

मंगलवार, 23 नवंबर 2010

कविता के अलावा

म चीजों को, लोगों को, दुनिया को बदलते हुए देखना चाहते हैं, लेकिन उस के लिए करते क्या हैं? कोई कविता लिखता है, कोई कहानी कोई भारी भरकम आलेख और निबन्ध। लेकिन क्या यह पर्याप्त है? पढ़िए शिवराम अपनी इस कविता में क्या कह रहे हैं . . .
 
कविता के अलावा
  • शिवराम
जब जल रहा था रोम
नीरो बजा रहा रहा था वंशी
जब जल रही है पृथ्वी
हम लिख रहे हैं कविता


नीरो को संगीत पर कितना भरोसा था
क्या पता
हमें जरूर यक़ीन है 
हमारी कविता पी जाएगी
सारा ताप
बचा लेगी 
आदमी और आदमियत को
स्त्रियों और बच्चों को
फूलों और तितलियों को 
नदी और झरनों को


बचा लेगी प्रेम
सभ्यता और संस्कृति 
पर्यावरण और अंतःकरण

पृथ्वी को बचा लेगी 
हमारी कविता


इसी उम्मीद में 
हम प्रक्षेपास्त्र की तरह 
दाग रहे हैं कविता
अंधेरे में अंधेरे के विरुद्ध 


क्या हमारे तमाम कर्तव्यों का 
विकल्प है कविता

हमारे समस्त दायित्वों की 
इति श्री 


नहीं, तो बताओ 
और क्या कर रहे हो आजकल 
कविता के अलावा ?

13 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सही कहा है ...केवल लिखने से ही कुछ नहीं होगा ...अनुसरण भी करना चाहिए ...बहुत अच्छी रचना .

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

एकदम सही।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कविता के आदर्शों को जिया जाये, तो बने बात।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

लिखने से भी हलचल होती है..

उम्मतें ने कहा…

मैं तो कविता छोड़ सभी कुछ करने पर उतारू हूं इन दिनों !

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

कालजयी प्रश्न...

और क्या कर रहे हो आजकल
कविता के अलावा ?

...आदर्श लिखने से बेहतर है जीया जाय...लेकिन कुछ न करने से तो बेहतर है कुछ कहा जाय। कम से कम जीवित होने का एहसास तो कराती है कविता। वैसे ही जैसे ठहरे हुए पानी में फेंका हुआ एक कंकड़ तालाब को भर तो नहीं सकता लेकिन उठती हैं लहरें...

बेनामी ने कहा…

अच्छा लिखते हो मियाँ !!! आप यह बतलाईये कविता झूठी  होती है या विज्ञानं .....? मेरी अध्यापिका कहती है के कविता झूठी  होती है और विज्ञानं सत्य होता है |

क्या कविता और  विज्ञान एक दुसरे के विपरीत हैं ??


Shah Nawaz ने कहा…

दिल को छूती ही रचना है.... एक-एक बात सही है... लिखना भी करने जैसा ही है, लेकिन करना नहीं...

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

बहुत ही प्रेरक और सुन्दर कविता !

विष्णु बैरागी ने कहा…

मेरी जो बात मैं नहीं कह पाता, कविता कह देती है, किसी और की कलम से।
यह होती है कविता।

Neeraj ने कहा…

कविता में भी तो हम अलख नहीं जगा रहे| लिख रहे हैं बस अपने टूटे हुए सपने.. थोपी गयी महत्वाकांक्षा...अपना ही अधूरा जीवन...

शरद कोकास ने कहा…

शिवराम जी की यह कविता ज़िन्दगी मे कविता की अहमियत को पूरी ताकत के साथ साबित करती है ।

चंदन कुमार मिश्र ने कहा…

एक आवश्यक सवाल सभी कवियों से। लेकिन खुद से भी कि मैं क्या कर रहा हूँ कविता के अलावा?