@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: पुराने मोहल्ले में दीवाली की राम-राम

रविवार, 7 नवंबर 2010

पुराने मोहल्ले में दीवाली की राम-राम

ज बहुत थोड़े समय के लिए पुराने मोहल्ले में जाना हुआ। मैं ने पिछली 19 सितम्बर को अपना पुराना घर खाली कर दिया था और अस्थाई रुप से अपने एक मित्र के नवनिर्मित मकान में आ गया था। नए घर में सामान जमाने अपने कार्यालय को काम के लायक बनाने के साथ रोज-मर्रा के कामों और इस बीच तेजी से घटे घटनाक्रम ने बीच में साँस लेने तक की फुरसत नहीं लेने दी। बीच में सिर्फ एक बार डाक देखने गया था कि कोई महत्वपूर्ण डाक तो नहीं है, और केवल निकटतम पड़ौसी से पाँच मिनट बात कर के लौट आया था। तभी से सोचता रहा था कि वहाँ जाऊँ। लेकिन पूरे मुहल्ले के कम से कम पाँच-सात पड़ौसियों से तो मिलना ही होता। जिस से नहीं मिलता, वही शिकायत करता, इस में समय लगता इसी कारण से नहीं जा सका। पहले से नियत था कि आज दिन में कम से कम तीन-चार घंटों के लिए वहाँ जाया जाय। लेकिन परिस्थितियों ने कार्यक्रम को बदल दिया। 
शोभा ने तो जाने से साफ मना कर दिया कि कल-परसों बच्चे वापस जाएँगे और अभी उन के लिए नाश्ता तैयार करना है। वे शोभा-मठरी (शोभा ने मठरी की नयी किस्म ईजाद की है जिसे मैं शोभा-मठरी कहता हूँ, इस का किस्सा फिर कभी) बनाने में जुट गईं। वैभव अपने मित्रों से मिलने चल दिया। शेष बचा मैं और पूर्वा। उसे आई-ब्रॉ बनवानी थी। हमें हिदायत मिली कि हम पूर्वा को लेकर जाएँ और जब तक उस का काम हो तब तक हम बोहरा जी के यहाँ बैठें। बोहरा जी हमारे पुत्री मित्र हैं, यानी हमारी पुत्री की मित्र के पिता (इस का किस्सा भी फिर कभी)। हमने ऐसा ही किया। हाँ वहाँ जाने के पहले हम ने दशहरा  मैदान रुक कर गूजर के यहाँ दूध के लिए बाल्टी रख दी। ताकि वापसी पर लिया जा सके। वहाँ श्रीमती बोहरा कुछ दिन पहले ही चिकनगुनिया से उठी थीं और अभी छोड़े गए जोड़ों के दर्द से जूझ रही थीं। हमने उन का हाल जाना, दीवाली की मिठाई चखी और दिवाली का राम-राम कर के वहाँ से चले। वे होमियोपैथिक उपचार कराना चाहती थीं। हमने उन के लिए डाक्टर तय किया और वहाँ से चले।
गे दीदी का घर, वहाँ हमने भाई-दूज का टीका निकलवाया, जीजाजी से मिले। वहाँ से निकले तो साँझ  हो चुकी थी। दूध लेने का समय हो चुका था। हम पहले दशहरा मैदान गए, वहाँ से दूध लिया। मन किया कि वापस लौट चलें पुराने मुहल्ले में फिर कभी फुरसत से मिलने चलेंगे। लेकिन पूर्वा को महेन्द्र नेह के घर आंटी और भाभियों से मिलना था, हमेवापस अपने पुराने मुहल्ले को निकल पड़े। पूर्वा को महेन्द्र जी के घर छोड़ा और मैं महेन्द्र जी के चार वर्षीय पौत्र आदू को साथ ले कर मिलने निकल पड़ा। मीणा जी, सोनी जी, धैर्यरत्न, निकटतम पड़ौसी जैन साहब मिले। जयकुमार जी घूमने निकले थे उन से मिलना नहीं हो सका। सब के यहाँ मिठाइयाँ चखनी पड़ीं। सब ने मुझ से बेमुरव्वत होने की शिकायत की कि मैं डेढ़ माह तक मिलने तक नहीं आया। सब को फिर से अपने नए मकान का पता बताया और वहाँ आने का न्यौता दिया। अंत में वापस महेन्द्र जी के घर हो कर लौटा। 
दीवाली की राम-राम के लिए हुई इस संक्षिप्त यात्रा में पता लगा कि इस वर्ष किसी के घर मावा/खोया की मिठाई नहीं बनी। जिस के यहाँ थी उस का कहना था कि वह उन की सब से विश्वसनीय दुकान से लाया गया था। यह सब दीवाली से चार माह पहले से काफी मिलावटी और कृत्रिम मावा/खोया पकड़े जाने के कारण था। मैं सोच रहा था कि लोग मावा/खोया बिलकुल बंद कर दें तो अच्छा, इस से कम से कम दूध की प्राप्यता बढ़ जाएगी। सब ने एक बात पूछी कि मेरे नये मकान का निर्माण आरंभ हुआ या नहीं, और कब तक पूरा हो लेगा? मेरे साथ गया आदू पक्का चतुर्वेदी निकला, जहाँ गया वहीं सब से अच्छी मिठाई पर हाथ मारा। हालाँ कि वापसी में उसे जब बताया कि वह मेरे साथ घूम कर लौटा है तो अब चौबे से दुबे हो गया है। उस ने सहर्ष स्वीकार कर लिया कि वह वाकई दुबे हो गया है। हालांकि उन के घर के गेट से बाहर हमारे कदम पड़ते ही उस ने घोषणा कर दी कि वह दुबे नहीं बना है और चौबे ही है।

13 टिप्‍पणियां:

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

चलिए, पिछला अवसाद भूलकर कुछ मिलना-मिलाना हो गया। मन बदल गया होगा। शुभकामनाएँ।

Sanjeet Tripathi ने कहा…

ye accha kiya aapne jo mil aaye aap sabse.... yahi to mauka hota hai.... aur upar se yah baat ki iske baad aapko aisa mauka kab milega sab logo se aise mil lene ka, ye aap bhi nahi bata sakte...

isliye,

happy wali diwali. deep parv ki badhai aur shubhkamnayein swikar karein is akinchan ki taraf se....

Abhishek Ojha ने कहा…

दो किस्से पेंडिंग हैं.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

लम्बित वादों की तरह किस्सों को तारीख मत दीजिये, तारीखी बना दीजिये..

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

हा हा ये भी ठीक ही रहा चौबे जी चौबे जी ही रहे।

उम्मतें ने कहा…

अक्सर मुड़कर जाना संभव नहीं हो पाता ! पर आपने निपटा लिया !

Udan Tashtari ने कहा…

मैं ने पिछली 19 नवम्बर को अपना पुराना घर खाली कर दिया था

-याने अब तो दस दिन में साल होन जा रहा है और मैं समझ रहा था कि अभी कुछ माह पूर्व ही तो आप शिफ्ट हुए हैं. कहीं डेट पढ़ने लिखने में कुछ गड़बड़ तो नहीं. :)


चलिए, अच्छा है , सबसे राम राम होती रहे.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

परिचितों के साथ मिल बैठ लेने से मन का बोझ कम हो जाता है। किसी न किसी बहाने निकल जाया करें घूमने को।

विष्णु बैरागी ने कहा…

आशा है, पुराने पते पर भेजा गया मेरा अभिनन्‍दन पत्र भी मिल गया होगा। अपना नया पता सूचित कीजिएगा ताकि पत्राचार सूची (जी हॉं, मैं अभी भी पत्राचार करता हूँ) को अद्यतन कर सकूँ।

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

दीपावली का अच्छा संस्मरण।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

पुरानी यादें संजोये रखिए :)

shikha varshney ने कहा…

अच्छा है सबसे दुआ सलाम होती रहे .अच्छा संस्मरण रहा.

विष्णु बैरागी ने कहा…

जानने की उत्‍सुकता बनी हुई है कि मेरा अभिनन्‍दन पत्र आपको मिला या नहीं। अपना नया पता भी उपलब्‍ध कराऍं।