@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: गरमी की भीषणता के बीच एक रात और दिन

सोमवार, 21 जून 2010

गरमी की भीषणता के बीच एक रात और दिन

र्मी का भीषण प्रकोप चल रहा है। सोचा था इस बार बरसात जल्दी आ जाएगी। पर मौसम का अनुमान है कि अभी एक सप्ताह और लगेगा। पारा फिर से 48 के नजदीक पहुँच रहा है। कल रात सोने के भी लाले पड़ गए। कूलर बिलकुल असफल हो चुका था। एक बजे तक फुटबॉल मैच देखता रहा। आँखें बन्द होने लगीं, तो टीवी बंद कर सोने की कोशिश की, लेकिन गर्मी सोने दे तब न। पन्द्रह मिनट इंतजार कर फिर से टीवी चला दिया। पूरा मैच देख कर सोने गया। फिर कब नींद आई पता नहीं। कोई पच्चीस-तीस बरस पहले कोटा इतना गरम न हुआ करता था। लेकिन जब से थर्मल पॉवर प्लांट शहर की छाती पर खड़ा हुआ है तब से गर्मी बढ़ती गई। अभी सात यूनिटें चल रही हैं। दो से तीन ट्रेन कोयला रोज फुँक जाता है। बैराज में बॉयलर का पानी आता है, तो बैराज का पानी भी चालीस डिग्री सैल्सियस से कम नहीं रहता। कोई तैरता हुआ दस फुट अंदर चला जाए तो ताप से रक्तचाप बढ़े और चक्कर खा कर वहीं डूब ले। इस भय से लोगों ने बैराज में नहाना भी बंद कर दिया। विशाल जलराशि सिर्फ देखने भर को रह गई।

 शायद ऐसे ही मिल जाए कुछ राहत
सुबह अदालत निकलने के पहले नाश्ता करने बैठा तो पूरा नहीं कर पाया। कुछ अंदर जा ही नहीं रहा था। मैं अपनी प्लेट या थाली में कभी कुछ नहीं छोड़ता, पर आज छोड़ना पड़ा। अन्न का निरादर करने का अफसोस तो बहुत हुआ। पर अब इन चीजों की परवाह कौन करता है? एक जमाना था, तब शास्त्री जी के आव्हान पर कम से कम आधे देश ने सोमवार को एक समय भोजन करने का नियम बना लिया था। अब वैसी जरूरत तो नहीं है। लेकिन फिर भी लाखों टन खाद्य प्रतिदिन देश में इसी तरह बरबाद कर दिया जाता है। हम होटलों में जा कर देखें, या फिर शादी विवाह की पार्टियों में जहाँ के कचरा-डब्बे इस बेकार हुई खाद्य सामग्री से भरे पड़े रहते हैं। यदि इस बेकार होने वाली खाद्य सामग्री को बचा लिया जाए तो भी बहुत हद तक हम खाद्य सामग्री की मांग को घटा सकते हैं जो निश्चित ही उस की कीमतों में कमी भी लाएगी। 

सूरज ही क्या कम था, जलाने को
स साल कूलरों के पैड नहीं बदले गए थे। शायद एक कारण यह भी था कि कूलर अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर रहे हैं। मैं अपने मिस्त्री से कह चुका हूँ लेकिन उसे फुरसत नहीं मिली शायद। बिटिया दो दिन का अवकाश ले कर आई है। सप्ताहांत के दो दिन मिला कर कुल चार दिन के लिए। कल रात की गर्मी की तड़पन से आज मिस्त्री को बुला लाने की बात हुई, लेकिन उस के बरामद होने में आज भी शंका हुई, तो कहने लगी, मैं बदल दूंगी। और सच में एक कूलर के पैड घर में पड़े थे वे बदल दिए। मैं शंका करता ही रह गया कि वह कर पाएगी या नहीं। कहने लगी, मैं सब कुछ कर लेती हूँ। वह पिछले छह वर्ष से घऱ से बाहर रह रही है। तीन वर्ष छात्रावसों में निकले फिर डेढ़ वर्ष अपनी सहकर्मियों के साथ रही, डेढ़ वर्ष से अकेली रहती है। सुबह उठ कर नाश्ता और दोपहर का टिफिन बनाना, तैयार हो कर अपने काम पर जाना, शाम को वापस लौट कर अपना खाना बनाना। इस के अतिरिक्त अपने आवास की सफाई, कपड़ों की धुलाई वगैरा सारे घर के काम वह स्वयं कर रही है। कितनी ऊर्जा होती है लड़कियों में कि वे घर और दफ्तर को पूरी कुशलता के साथ संभाल लेती हैं। कोई कमी रहती है तो शायद समय की जो इन सब कामों के लिए कम पड़ जाता है। इन सब के बाद, लगातार अपनी प्रोफेशनल योग्यता का विकास करते हुए नया ज्ञान और कुशलता अर्जित करते जाना। सच में उन्हें 'देवी' कहा जाना कदापि मिथ्या नहीं। आखिर मुझे बाजार जा कर दूसरे कूलर के लिए भी पैड लाने पड़े। अब वे बदले जा रहे हैं।

17 टिप्‍पणियां:

SANSKRITJAGAT ने कहा…

उत्‍तम: लेख:

Satish Saxena ने कहा…

बिटिया ने कूलर के पैड खुद बदल लिए, शुभकामनायें इस बच्ची के लिए भाई जी ! यह आपका नाम रोशन करेगी !

P.N. Subramanian ने कहा…

सुन्दर आलेख. जलवायु में परिवर्तन तो निश्चित ही हो रहा है और यह परिवर्तन मानव जनित ही तो है.

निर्मला कपिला ने कहा…

बडिया आलेख। लेकिन गर्मी मे घर बैठिये ना ।मै तो नही कहीं जाती। तौबा। शुभकामनायें

राज भाटिय़ा ने कहा…

दिनेश जी , बहुत मुश्किल होगी.... जब तक मां जिन्दा थी हम जुलाई मै आते थे, ओर मां एयर कंडीशन ओए कुलर को सारा दिन लगाये रखती थी, ओर हम सब को अपने पास बिठा कर रखती थी, कही आना जाना हो तो ऎ सी गाडी से, अब भारत आने को दिल ही नही करता

Sanjeet Tripathi ने कहा…

are baba re! abhi bhi 48?

raipur to kam se kam bahut accha ho gaya is mukable me, abhi rat ko 12 baje hi 4thi barish jhelte hue, bheegte hue ghar pahucha hu, tez barish hui kuchh der.
din ka tapman gir kar jyada se jyda 28 se 30 pe pahuch gaya hai......


ab chunki bitiya ne hostel life se lekar alone rahne ka bhi muka le liya hai to sab khud hi karna sikh liya hai.....
mai isiliye lambe samay se ek baat kahta aaya hu ki betiyan hi ghar banati hain..... jis ghar me beti na ho uski halat dekhiye aap........tulna kariye beti wale ghar me aur bina betiwale ghar me....

उम्मतें ने कहा…

बिटिया के बारे में आपके ख्यालात से सहमत !

विष्णु बैरागी ने कहा…

अच्‍छा आलेख। गर्मी में अपने स्‍वास्‍थ्‍श्य का ध्‍यान रखिएगा।

बिटिया की पीठ ठोकिएगा। बेटियॉं तो होती ही हैं शीतल छाया।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बेटे-बेटियों में यह उत्कण्ठा सदैव रहती है कि वे बच्चों की छवि से बाहर आयें । शीघ्रस्य शुभम् । आपकी बिटिया को शुभकामनायें ।

सुशीला पुरी ने कहा…

अच्छी पोस्ट ..... सचमुच गर्मी मे निकल पाना मुश्किल है ।

Himanshu Mohan ने कहा…

बेटी-पोस्ट वैसे ही अच्छी हो जानी थी। आप ने जब-जब बेटी के उल्लेख सहित कुछ भी पोस्ट किया है - बहुत अच्छा लिखा है, जितना आप हमेशा लिखते हैं - उससे भी अच्छा।
सच बेटियाँ ही तो देवियाँ हैं जो संसार सम्हाले हुए हैं। बस एक ही तक़लीफ़ होती है कि बहू या अन्य रूप में जो होती है, वह भी किसी की बेटी ही होती है - जो अक्सर इग्नोर कर जाते हैं लोग।
एक बात और याद आई। कोई संकल्प तो नहीं है, मगर अमूमन मैं अभी भी एक ही समय भोजन करता हूँ, लगभग साल में 300 दिन। भोजन छोड़ने के प्रति तो मेरा दुराग्रह है, नाराज़ हो उठता हूँ - ख़ुद से और अगर किसी ने ज़िद करके थाली में कुछ रखा - तो उससे भी। शास्त्री जी के समय मैं नहीं था, मगर मुझे लगता है कि यह बात स्वयं भीतर से आनी चाहिए कि अगर सब एक-एक चम्मच चावल या एक कौर रोटी भी व्यर्थ जाने से बचा सकें, एक-दो चम्मच सब्ज़ी या दाल भी - तो हर दस आदमी पर ग्यारहवाँ आदमी भोजन पा सकता है। बात अमीरी ग़रीबी की नहीं, इथिक्स की है। बात है "तेन-त्यक्तेन-भुंजीथा:" की। शायद इस उपनिषद-मंत्र को विश्व को समझने की ज़रूरत है।
बधाई और आभार, एक अच्छी पोस्ट के लिए, जिसमें "बेटी" का आ जाना इसको हमेशा दिव्य बनाता रहेगा।

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

दो दिन की वर्षा से अब यहां तो कुछ राहत है।
लेकिन राजस्थान में अभी 15दिनों तक यह हाल रह सकता है।

हो सके तो 15जुलाई के बाद कुछ राहत मिले।

अन्तर सोहिल ने कहा…

गरमी का प्रकोप पूरे जोर पर है जी
ए सी और कूलर सबने हाथ खडे कर दिये हैं।

हैरत हुई कि कूलर के पैड (फूस) बदलने के लिये भी आप मिस्त्री (मकैनिक) के भरोसे रहते हैं।

बिटिया (बहन) पर गर्व है।

प्रणाम स्वीकार करें

Anita kumar ने कहा…

वाह! बिटिया को हमारी शुभाषीस

रंजना ने कहा…

मौसम/पर्यावरण तथा बिटिया के बारे में आपके विचारों से पूर्ण सहमति है....

सुन्दर.... मन को छूती पोस्ट...

हमारीवाणी ने कहा…

आ गया है ब्लॉग संकलन का नया अवतार: हमारीवाणी.कॉम



हिंदी ब्लॉग लिखने वाले लेखकों के लिए खुशखबरी!

ब्लॉग जगत के लिए हमारीवाणी नाम से एकदम नया और अद्भुत ब्लॉग संकलक बनकर तैयार है। इस ब्लॉग संकलक के द्वारा हिंदी ब्लॉग लेखन को एक नई सोच के साथ प्रोत्साहित करने के योजना है। इसमें सबसे अहम् बात तो यह है की यह ब्लॉग लेखकों का अपना ब्लॉग संकलक होगा।

अधिक पढने के लिए चटका लगाएँ:
http://hamarivani.blogspot.com

डा० अमर कुमार ने कहा…


चलिये.. एक बात तो साफ है,
जो आप सोचते ही रह गये, बेटी ने कर दिखाया ।
बेटियाँ शीतलता प्रदान करने के लिये होती ही हैं ।
इससे बेख़्याल कि मुझे क्या, मुझे तो चार दिन बाद वापस लौट ही जाना है,
छात्रावास में रहते हुये सहायता के लिये तत्परता और स्वालम्बन का आत्मविश्वास आ जाता है ।
मेरी बेटी का भी यही हाल है, हर बात का एक ही ज़वाब, " डॅन्ट वरी पापा, आई शैल मैनेज़ !"