@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: एक राजनेता की मौत

मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

एक राजनेता की मौत

हामहिम के देहांत का समाचार मिलने पर बहुत लोगों को शॉक (झटका) लगा था। वे अभी तीन माह पहले ही तो राज्य की राज्यपाल बनाए गए थे। उस समय किसी ने यह थोड़े ही सोचा था कि वे इतनी जल्दी विदा ले जाएँगे, और वे भी इस तरह पद पर बने रहते हुए। पर यह तो होता ही है, जो आता है वह जाता है। वैसे अभी उन की उम्र ही क्या थी? मात्र पिचहत्तर साल और डेढ़ माह से कुछ ऊपर। यह भी कोई इस दुनिया से विदा लेने की उम्र होती है। लोग तो 90 वर्ष की उम्र के बाद भी राजकीय पदों पर काम करते रहते हैं।  पर शायद उन का शरीर राजनीति में काम करते हुए बहुत थक गया था, या फिर वे शरीर से भारी थे कि दिल साथ न दे पाया। हो सकता है दिल को खून पहुँचाने वाली धमनियों में इतनी चर्बी जमा हो गई हो कि दिल को रक्त पहुँचना ही बंद हो गया और वह जवाब दे गया। सब से बड़े सरकारी अस्पताल तक पहुँचाए जाने के पहले वे अपने प्रसाधन कक्ष (टॉयलट) में अचेत पाए गए थे। चिकित्सकों ने अच्छी तरह जाँच कर ही घोषणा की कि वे अब हम से सदा के लिए विदा ले जा चुके हैं। 
न की मृत्यु से बहुत से लोगों को प्रसन्नता प्राप्त करने का सुअवसर प्राप्त हुआ।  ये तमाम लोग या तो राज के  या फिर वित्तीय संस्थाओं के कर्मचारी थे। ऐसा भी नहीं कि उन्हें ऐसा सुअवसर मुश्किल से ही प्राप्त होता हो।  जब भी किसी बड़े राजनेता की मृत्यु होती उन्हें ऐसा अवसर मिलता ही रहता था। सही भी है कि आप के पास बहुत से काम करने को हों। उन के कारण आप तनाव में डूबे हों। घर से पत्नी जी का फोन आया हो कि घंटे भर बाद आप के साले साहब अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ एक सप्ताह के लिए आ रहे हैं और आप को उन्हें लेने स्टेशन जाना है। तब अचानक यह समाचार मिले कि अवकाश हो गया है और अब दो दिन आप को कोई काम नहीं करना है, तो तनाव ऐसे गायब होगा ही, जैसे गधे के सिर से सींग। ऐसे में प्रसन्न होना अस्वाभाविक थोड़े ही है। ऐसे में प्रसन्नता ऐसे फूट पड़ती है जैसे रेगिस्तान में अचानक ठंडे और मीठे पानी के सोते फूट पड़े हों। राजनेता की मृत्यु से लगे शॉक के लिए यह अवकाश शॉक ऑब्जर्वर बन जाता है और दूसरे कई शॉक झेल जाता है।

प्रसन्न होने वाले ऐसे अनगिन लोगों के बीच बहुत से लोग ऐसे भी थे जिन्हें वाकई शॉक लगा था और फिर उस में डूब गए थे। ये वे लोग थे जो पहले ही किसी न किसी शोक में कांधे तक डूबे हुए थे। अवकाश की घोषणा ने उन के लिए शॉक ऑब्जर्वर के स्थान पर उलटा झटका देने का काम किया था। इन में एक तो बिलासी था। वह कंपनी की नौकरी में था और कंपनी के क्वार्टर में रहता था। नौकरी छूटी तो टाइपिंग की दुकान लगा  ली , जैसे तैसे घर चलाने लगा। पुश्तैनी मकान में पिताजी अपने जीते जी ही  किराएदार रख गए थे। कंपनी बंद हो गई। कंपनी ने मकान खाली करने का नोटिस दे दिया। उस ने किराएदार से मकान खाली करने को कहा तो किराएदार ने इन्कार कर दिया। बिलासी को घर का मकान होते हुए किराए के मकान में जाना पड़ा। मकान खाली कराने का मुकदमा किया उस की आखिरी पेशी थी, जज साहब बहस सुन कर फैसला देने वाले थे। अचानक अवकाश से बहस मुल्तवी हो गई। उसे जो शॉक लगा है उस से वह संभल नहीं पा रहा है।
धर एक महिला राशन कार्ड बनवाने की लाइन में खड़ी थी। राशनकार्ड न होने से उसे राशन का सस्ता आटा नहीं मिल रहा। मर्द दूसरे शहर में मजदूरी पर है। इधर तीन बच्चे हैं और वह है। सुबह कागज तैयार करवाने में चालीस रुपए खर्च हुए, कारपोरेटर के दस्तखत करवाने के लिए भटकने में तीस रुपए टूट गए। लाइन में बस चार आदमी और रह गए थे, उन के बाद पाँचवाँ नम्बर उसी का था कि खटाक से खिड़की बंद हो गई। सब के सब भोंचक्के रह गए। अभी तो लंच होने में भी सवा घंटा शेष है। पूछा तो पता लगा कि राज्यपाल का देहान्त हो गया है। तुरंत छुट्टी कर देने का हुकम फैक्स से आया है। कल भी छुट्टी रहेगी। परसों आइए। बेचारी औरत कह रही थी -बस आज आज का आटा खरीद कर घर पर रख कर आई हूँ। सोचा था आज राशनकार्ड मिल जाएगा तो कल राशन की दुकान से आटा खरीद लूंगी। अब बाजार से दो गुना कीमत का आटा खरीदना पड़ेगा। वह अपने खुदा को कोस रही थी कि उसे भी राज्यपाल को अपने घर बुलाने को यही वक्त मिला था. एक दिन ... क्या आधा घंटा और नहीं रुक सकता था कि उसे कम से कम राशनकार्ड तो मिल जाता।
घंटे भर में सारे सरकारी दफ्तर, सारी अदालतें बंद हो गईं। मुवक्किल जिन के काम अटके थे अपना मुहँ मसोस कर चल दिए। वकीलों के मुंशियों ने अपने अपने बस्ते बांधे और साइकिलों व बाइकों पर लाद दिए।  ज्यादातर वकील अदालत से चल दिए। कुछ अब भी वकालत खाने में ताश और शतरंज खेलने में मशगूल थे। ये वे थे जो वकील तो थे पर जिन के घर वकालत से नहीं बल्कि मकानों दुकानों के किरायों और उधार पर उठाई हुई रकम से चलते थे। इन्हें आधे दिन के अवकाश से तो कोई समस्या नहीं हुई थी। वे शाम पाँच बजे के पहले ताश और शतरंज छोड़ कर जाने वाले नहीं थे। पर अगले दिन के अवकाश से जरुर परेशान थे। सोच रहे थे कि कल का दिन कैसे बिताएँगे? ताश और शतरंज के लिए कौन सी जगह तलाशी जाएगी। गर्मी का मौसम न होता तो किसी पिकनिक स्पॉट पर चले जाते। गर्मी में तो वहाँ भी दिन बिताना भारी पड़ता है।

20 टिप्‍पणियां:

दीपक 'मशाल' ने कहा…

Governer ka marna dukhad nahin.. dukhad to logon ko takleef me dhakela jana hai.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

काश कि हमें भी दिल्ली में भी ऐसी ही किसी प्रसंता की अनुभूति होती :)

उम्मतें ने कहा…

जीवन अवसरों से वंचित मनुष्यता की पीड़ाओं / त्रासदियों की लम्बी उम्र के अनगिनत कारणों में से राजकीय शोक एकमात्र कारण नहीं है जज / अधिकारी की साधारण सी कैजुअल लीव भी यह काम कर सकती है ! जहां तक शोक का प्रश्न है वह नितांत व्यक्तिगत स्तर पर तय होता है जैसे किसी के लिये साले का आगमन हार्दिक दुःख का कारण भी हो सकता है फिर भले ही वो इस दुःख को अभिव्यक्त ना कर पाये ! आशय यह कि शोक का अभिव्यक्त होना अपरिहार्य नहीं है !

राज भाटिय़ा ने कहा…

भाई अगर रोज एक नेता मरे तो भारत मै गरीबी अपने आप दुर हो जायेगी... ना राशन कार्ड बनेगा, ओर ना ही सस्ता आटा मिलेगा..

जितेन्द़ भगत ने कहा…

मजेदार।

Arvind Mishra ने कहा…

महामहिम महिला थीं या पुरुष ?
अप प्रभा राव की ही बात कर रहे हैं न ?
फिर मुझे ही यह कनफूजन क्यों हो रहा है ?

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

@Arvind Mishra
महामहिम कोई भी हो क्या फर्क पड़ता है? वह स्त्री या पुरुष नहीं होता। वह सिर्फ महामहिम होता है।

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

वकील साहब!
सरकारी लोगों को खुशी और आम जनता को दुख।

रोहित ने कहा…

badhiya vayngya!!

रोहित ने कहा…

badhiya vayngya!!

रोहित ने कहा…

badhiya vayngya!!

Arvind Mishra ने कहा…

@तकनीकी दृष्टि से आप ठीक कह रहे हैं मगर ऐसे लेखन प्रयोग कम ही देखे हैं ..इसलिए ही टोक बैठा ! धृष्टता के लिए क्षमा !

हिंदीब्लॉगजगत ने कहा…

ब्लौगर मित्र, आपको यह जानकार प्रसन्नता होगी कि आपके इस उत्तम ब्लौग को हिंदीब्लॉगजगत में स्थान दिया गया है. ब्लॉगजगत ऐसा उपयोगी मंच है जहाँ हिंदी के सबसे अच्छे ब्लौगों और ब्लौगरों को ही प्रवेश दिया गया है, यह आप स्वयं ही देखकर जान जायेंगे.
आप इसी प्रकार रचनाधर्मिता को बनाये रखें. धन्यवाद.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

संवेदना व्यक्त करने के और भी तरीके हैं छुट्टी के अतिरिक्त । छुट्टी देकर तो आप प्रसन्नता फैला रहे हैं । अब कोई कितना अपने मन के भाव छिपाये ।

विष्णु बैरागी ने कहा…

घटना एक, प्रभाव अनेक।

Abhishek Ojha ने कहा…

लाभ ही लाभ हैं जी... मैं सोच रहा हूँ क्या हमारी कंपनी में भी छुट्टी होती?

कुमार संभव ने कहा…

मेरे पिता जी सरकारी कर्मचारी हैं . मुझे याद है की पहले जब कोई महामहिम गुजर जाते तो हम बच्चो की मौज हो जाती पापा को एक छूटी मिल जाती और हम सब पिकनिक पे जाते .........आप का व्यंग उन दिनों की याद दिला गया.

Anita kumar ने कहा…

प्रसन्न हों या दुखी ये तो इस बात पर निर्भर करता है कि हम खिड़की के किस तरफ़ खड़े हैं। बहुत ही संवेदनशील लेख लेकिन मजेदार स्टाइल में आभार

अनूप शुक्ल ने कहा…

तनाव ऐसे गायब होगा ही, जैसे गधे के सिर से सींग।
तनाव पहले था फ़िर गायब हुआ। लेकिन गधे के सिर से सींग तो गायब ही रहते हैं।

Unknown ने कहा…

अपनी अपनी सबने कह ली लेकिन हम चुपचाप रहे................

पिछले २० दिन बडी व्यस्तता मे बीते. सोमवार (२६.०४.१०) को सवेरे जोधपुर लौटे थे और ७.०० पर नेट खोलकर थोडा ब्लोग हलचल देखी और सो गये ७.३० पर कार्यालय से फोन आया कि सिस्टम मे गडबडे है जल्दी पहुचो. तो ना तो चय पी ना टिफिन लिया नीद भगाई और जा पहुचे कार्यालय ३ बजे तक कोई प्रगति नही हुई तो थोडा तिरछी उन्गली से दूसरे शाखाओ के सर्वर से काम शुरु करवाया. हमरे यहा समाशोधन क काम होता है जो समय पर ही निपटाना होता है. किसी तरह सवेरे का काम शुरू किया तो पता चला कि प्रभा राव जी का निधन हो गया है. इसका सीधा मतलब यही था कि चैन की सान्स ली जा सकती है ८.३० तक जितना काम हो स्दकता था किया फिर काम जबरन बन्द करना पडा. सभी अफ़सरो को दूसरा दिन जो सभी के लिये छुट्टी का दिन होता फिर कार्यालय आन था बचे खुचे काम को खतम करने. दूस्रए दिन भी सिस्टम ठीक करने वले अपनी कोशिशे करते रहे और हम फटे घाव सीते रहे (बचा खुचा काम निपटाते रहे) उस दिन भी २८ को सिस्टम कुछ ठीक हुआ और बचे हुए काम भी सब खतम हुए. आज से थोडा आराम मिलने की सम्भावना है. बाकी प्रभु इच्छा बलवान.