@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: ख्वाब में आके वो सताने लगा

रविवार, 3 जनवरी 2010

ख्वाब में आके वो सताने लगा

पिछले वर्ष के अंतिम सप्ताह में कोटा से गुजरने वाले अलाहाबाद को अहमदाबाद से जोड़ने के लिए बन रहे राष्ट्रीय उच्चमार्ग पर निर्माणाधीन हैंगिग ब्रिज पर हादसा हुआ और एक तरफ बना पुल का हिस्सा नदी में गिर पड़ा। काम कर रहे श्रमिक/इंजिनियर मलबे में जा दबे। अब तक 42 मृतकों के शव मिल चुके हैं। कुछ और शव अभी मलबे में हैं। तियालिसवीं मृत्यु अस्पताल में एक घायल की हुई। कुछ लापता लोगों के परिजन अब भी अपने प्रिय की तलाश में यहाँ चंबल किनारे बैठे हैं। भास्कर की यह खबर देखें ....

चंबल के तट पर पति का इंतजार


छह दिन से एक नवविवाहिता चंबल के तट पर बैठकर अपने पति का इंतजार कर रही है। उसका पति चंबल ब्रिज हादसे के बाद से लापता है। उसकी शादी चार माह पहले ही हुई है। रो—रोकर उसका बुरा हाल है और स्वास्थ्य भी गिरता जा रहा है। पश्चिम बंगाल के किशोर बिश्वास का विवाह चार माह पहले लिपि बिश्वास से हुआ था। शादी के कुछ दिन बाद ही किशोर कोटा आ गया। जनवरी में वो छुट्टी पर घर जाता। अभी लिपि की मेहंदी का रंग भी फीका नहीं पड़ा था और उसकी कई रस्में भी पूरी नहीं हुई थी कि चंबल ब्रिज हादसा हो गया। हादसे की सूचना मिलते ही लिपि अपने ससुर, ननद, ननदोई , मामा ससुर के साथ 26 दिसंबर को यहां आ गई। उसके बाद से वह चंबल के दूसरे तट पर हुंडई कंपनी के शिविर में रह रही है। उसकी हालत से परिजन भी चिंतित हैं। मामा अमोल बिश्वास ने बताया कि कोई भी शव मिलने की सूचना पर लिपि घबरा जाती है। पूरा परिवार ईश्वर से किशोर के सही सलामत मिलने की प्रार्थना कर रहा है।
 


अपनों को हादसों में खोने वालों को समर्पित है पुरुषोत्तम 'यक़ीन' की यह ग़ज़ल ....






ख्वाब में आके वो सताने लगा
  •  पुरुषोत्तम 'यक़ीन'

 जिस को चाहा वही सताने लगा
हाथ थामा तो छोड़ जाने लगा


उस की आँखों में कुछ चमक आई
उस का बेटा भी अब कमाने लगा


वो न आया तो फिर ख़याल उस का 
ज़हन में बार-बार आने लगा

धड़कनें उस का नाम रटने लगीं
दिल कभी जब उसे भुलाने लगा

वो नहीं था तो उस का चहरा हसीं
सामने आ के मुस्कुराने लगा

मुंतज़िर दीद की थकी आँखें 
नींद का भी ख़ुमार छाने लगा

उस से रुख़्सत का वक़्त आया तो 
दिल मेरा बैठ-बैठ जाने लगा

नींद आने लगी ज़रा तो 'यक़ीन' 
ख्वाब में आके वो सताने लगा

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(समाचार दैनिक भास्कर से साभार)

15 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

पुरुषोत्तम यकीन जी को पढ़ना बड़ा सुखद रहा. आपका आभार कहता हूँ.

उम्मतें ने कहा…

निर्माणाधीन पुल के ध्वस्त होने से हुई जनहानि दुखद है ! ...अत्यंत दुखद !
पता नहीं क्यों ग़ज़ल कुछ खास नहीं लगी ? शायद घटना से विचलित मेरा मन ग़ज़ल के अच्छे पहलुओं को नज़रंदाज़ कर गया हो ,अतः खेद सहित !

राज भाटिय़ा ने कहा…

यह खबर हम ने भी देखी थी बहुत दुखद है,गजल मै भी दर्द झलकता है

अजित वडनेरकर ने कहा…

हादसे में अपनों को खोने के दर्द से गुजर चुका हूं। संवेदनशील पोस्ट। यकीन साहब की ग़ज़ल पर कुछ भी कहने में निशब्द हूं क्योंकि ये उससे आगे की बात कहती है।

Udan Tashtari ने कहा…

’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’

-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.

नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'

कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.

-सादर,
समीर लाल ’समीर’

Arvind Mishra ने कहा…

यकीनन ! कुछ गम कुछ खुशी लिए यह रचना !

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

यकीनन एक संवेदनशील पोस्ट.

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

एक सुंदर अभिव्यक्ति...दिल को बातों की एक खूबसूरत प्रस्तुति ग़ज़ल के रूप में..बहुत बहुत धन्यवाद जी!!

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत दुखद घटना, मार्मिक रचना.

रामराम.

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

इस तरह के हादसे अक्सर देखने को मिलते हैं...जो वस्तुत: मिलावट के कारण ही अधिक होते हैं.....
इस तरह असमय मृत्यु बहुत असहनीय होती है....हम तो सिर्फ दुख ही प्रकट कर सकते हैं..।बहुत भाव पूर्ण रचना प्रेषित की है।आभार।.

बवाल ने कहा…

आदरणीय सर,
दर्द को संजीदगी से कह पाना यक़ीन जी के लिए ही बना है ऐसा लगता है। कितनी मार्मिक घट्ना है।
आपका आभार जो आपने यक़ीन जी से फिर मिलवाया।

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत मार्मिक घटना है। मन दुखी हो गया पुरुशोतम यकीन जी को पढना बहुत अच्छा लगता है ये गज़ल भी कमाल की है धन्यवाद

Ashok Kumar pandey ने कहा…

एक और अच्छी ग़ज़ल

गौतम राजऋषि ने कहा…

इस हादसे से एक और हादसा याद आ गया जो हमारे साथ हुआ था कुछ वर्ष पहले शिमला से आगे रामपुर में ऐसे ही ब्रीज बनाते हुये सेना के ३२ जवान बह गये थे जिसमें दो अधिकारी भी शामिल थे। पूरे एक महीने तक हम शवों की तलाश करते रहे मगर बस छः शव मिले हमें।

यकीन साब की ग़ज़ल पे तो क्या कहूँ....

बेनामी ने कहा…

यक़ीन साहेब की ग़ज़ल संवेदनाओं को विस्तार देती है...