@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: मुन्नी पोस्ट, मुन्नी कविता, 'मम्मी इतना तो बतला दो' पुरुषोत्तम ‘यक़ीन’

गुरुवार, 27 अगस्त 2009

मुन्नी पोस्ट, मुन्नी कविता, 'मम्मी इतना तो बतला दो' पुरुषोत्तम ‘यक़ीन’

 पुरुषोत्तम ‘यक़ीन’ की इस मुन्नी कविता और आप के बीच से अब मैं हटता हूँ। 
आप पढ़िए.....
मम्मी इतना तो बतला दो
  •   पुरुषोत्तम ‘यक़ीन’

बिस्कुट तो ले आते पापा
गोदी नहीं बिठाते पापा

मम्मी इतना तो बतला दो
कब आते, कब जाते पापा
********************

8 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

क्या बात है!!

आभार इस रचना को प्रस्तुत करने का!

Meenu Khare ने कहा…

मुन्नी की कविता कहती मुन्नी सी इस पोस्ट का कथ्य मुन्ना सा नही है. बहुत गहराई से सोचने का आग्रह करती है कविता. पहले बेटियों वाली ग़ज़ल और अब पुरुषोत्तम जी की यह कविता पढवाने के लिए द्विवेदी जी को धन्यवाद.

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

एक गहन सोच को बाध्य करती मुन्नी कविता के लिये धन्यवाद.

रामराम.

Ghost Buster ने कहा…

जैसे सोचो, वैसे ही अर्थ निकल रहे हैं. चार लाइनों में समाई पूरी जिंदगी. क्या बात है. शानदार.

निर्मला कपिला ने कहा…

दिवेदी जी मैं तो अपना निक नेम पढ कर भागी आयी अभी भी अधिक लोग मुझे मुन्नि के नाम से जानते हैं किसि की मुन्नी दीदी किसी की मुन्नी आँटी यहां तक कि किसी की मुन्नी नानी भी हूँ हा हा हा। कविता बहुत सुन्दर है बधाई

बेनामी ने कहा…

गागर में सागर...

राज भाटिय़ा ने कहा…

दिनेश जी बहुत सुंदर कविता,लेकिन कई भिन्न भिन्न अर्थ लिये है यह कविता,
धन्यवाद

Dr Prabhat Tandon ने कहा…

" वह जल्दी घर से जाते थे और देर से आते थे ।
एक दिन घर जल्दी आ गये तो बच्चे ही डर गये ॥"
बहुत ही सुन्दर कविता । मार्ड्न होते समाज की विसंगतियाँ दिखाती हुई ...