@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: अपने ही आदर्श का अनुसरण करना सफलता का निश्चित मार्ग है

सोमवार, 12 जनवरी 2009

अपने ही आदर्श का अनुसरण करना सफलता का निश्चित मार्ग है

आज स्वामी जी की जयन्ती है।  उन जैसे मार्गदर्शक महापुरुष दुनिया में कम ही हुए हैं।  उपनिषदों के दर्शन को जिस विस्तार से शंकराचार्य जी ने व्याख्यायित किया था।  उसे और अधिक सरलीकृत और आधुनिक विज्ञान के आलोक में पुनर्व्याख्यायित करने का महान काम स्वामी विवेकानंद ने किया।  उन्हों ने विभिन्न दिशाओं की ओर बढ़े जा रहे षडदर्शनों को इस तरह व्याख्यायित किया कि वे एक ही दर्शन के विभिन्न फलक दिखाई देने लगे।

स्वामी जी ने  अद्वैत वेदांत के दर्शन को जिस सरल तरीके से दुनिया को समझाया वह अद्भुत ही है। यहाँ तक कि उन्होने भौतिक विज्ञान और आध्यात्मिक ज्ञान के बीच की बहुत महीन रेखा को भी ध्वस्त कर दिया।  मुझे तो उन्हें पढ़ने और समझने के दौरान यह भी समझ आया कि नास्तिकता और आस्तिकता भी कृत्रिम भेद हैं।  स्वामी जी तो यहाँ तक भी कह गए कि न कोई चिरंतन स्वर्ग है और न ही चिरंतन नर्क।

मुझे जब ग्यारहवीं कक्षा के इम्तहान में हिन्दी का पर्चा मिला तो उस का पहला प्रश्न गद्यांश था। जिस में कहा गया था कि,  'औरों को देख कर अपने मार्ग का निश्चय न करो, अपने लिए रास्ते का निर्माण खुद करो।  स्वामी जी एक स्थान पर कहते हैं...
प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है कि वह अपना आदर्श  ले कर उसे अपने जीवन में ढालने का प्रयत्न करे।  बजाय इस के कि वह दूसरों के आदर्शों को ले कर चरित्र गढ़ने की चेष्ठा करे, अपने ही आदर्श का अनुसरण करना सफलता का अधिक निश्चित मार्ग है।  संभव है, दूसरे का आदर्श वह अपने जीवन में ढालने में कभी समर्थ न हो। यदि हम किसी नन्हें बालक को एक दम बीस मील चलने को कह दें, तो वह या तो मर जाएगा या हजार में से एक रेंगता रांगता वहाँ तक पहुँचा तो भी वह अधमरा हो जाएगा।  बस हम भी संसार के साथ ऐसा ही करने का प्रयत्न करते हैं।  किसी समाज के सब स्त्री-पुरुष न एक मन के होते हैं, न एक योग्यता के और न एक ही शक्ति के। अतऐव उनमें से प्रत्येक का आदर्श भी भिन्न भिन्न होना चाहिए; और इन आदर्शों में से एक का भी उपहास करने का हमें कोई अधिकार नहीं।  अपने आदर्श को प्राप्त करने के लिए प्रत्येक को जितना हो सके यत्न करने दो।  फिर यह भी ठीक नहीं कि मैं तु्म्हारे अथवा तुम मेरे आदर्श द्वारा जाँचे जाओ।  आम की तुलना इमली से नहीं होनी चाहिए और न इमली की आम से।   आम की तुलना के लिए आम ही लेना होगा, और इमली के लिए इमली।  इसी प्रकार हमें अन्य सब के संबंध में भी समझना चाहिए।
बहुत्व में एकत्व ही सृष्टि का नियम है।  प्रत्येक स्त्री-पुरुष में व्यक्तिगत रूप से कितना ही भेद क्यों न हो, उन सब के पीछे वह एकत्व ही विद्यमान है।  स्त्री-पुरुषों के भिन्न चरित्र एवं उन की अलग-अलग श्रेणियाँ सृष्टि की स्वाभाविक विभिन्नता मात्र हैं।  अतएव एक ही आदर्श द्वारा सब की जाँच करना अथवा सब के सामने एक ही आदर्श रखना किसी भी प्रकार से उचित नहीं है।  ऐसा करने से केवल एक अस्वाभाविक संघर्ष उत्पन्न हो जाता है और फल यह होता है कि मनुष्य स्वयं से ही घृणा करने लगता है तथा धार्मिक एवं उच्च बनने से रुक जाता है।  हमारा कर्तव्य तो यह है कि हम प्रत्येक को उस के अपने उच्चतम आदर्श को प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करें,  तथा उस आदर्श को सत्य के जितना निकटवर्ती हो सके लाने का यत्न करें।

 आज हम जिस तरह अपने आदर्श को ही सब के लिए सर्वोपरि मानने पर चल पड़े हैं उस ने मानव जीवन में अनेक संघर्षों को जन्म दे दिया है।  मेरा इशारा ठीक ही धर्म और संप्रदायों के व्यवहार की ओर है।  जब कि यहाँ स्वामी जी की आदर्श से तात्पर्य धर्म से ही है।  जो अनिवार्यतः प्रत्येक व्यक्ति के लिए भिन्न होगा, उस के मन,योग्यता और शक्ति के अनुरूप।

16 टिप्‍पणियां:

Himanshu Pandey ने कहा…

स्वामी जी युगों युगों को प्रेरित करने व प्रभावित करने वाले महनीय महापुरुषों की श्रृंखला के अद्वितीय नक्षत्र हैं. भारत उनकी मनीषा व अलौकिक प्रतिभा का सदैव ऋणी रहेगा.

Arvind Mishra ने कहा…

विवेकानन्द जी की सबसे बड़ी सार्थकता है उनका भारतीय ज्ञान को सहज सरल रूप में आम लोगों तक ले जाना ! इस दिशा में किए गए उनके सत्प्रयास शंकराचार्य की विरासत को ही समृद्ध करते हैं -इस महान भारतीय मेधा को शत शत नमन !
और आपका आभार कि आज आपने इस अन्यतम महाविभूति का प्रातः स्मरण कराया !

प्रवीण त्रिवेदी ने कहा…

सच्ची बात है जी!!

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

महापुरुष की जन्मा जयन्ती पर आलेख बहुत अद्भुत है

Dr. Amar Jyoti ने कहा…

अब से 2500 वर्ष पहले भी किसी ने कहा था 'अप्प दीपो भव'। इन वैज्ञानिक मनीषियों की मेधा रूढ़ि न बन कर दीपक बने जिसके आलोक में हम अपना रास्ता ख़ुद तलाश करें, यही कामना है।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

स्वामी जी ने सही रुप मे बताया था कि भारत क्या है? उनको शत शत नमन.

रामराम.

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

मुझे तो उन्हें पढ़ने और समझने के दौरान यह भी समझ आया कि नास्तिकता और आस्तिकता भी कृत्रिम भेद हैं। स्वामी जी तो यहाँ तक भी कह गए कि न कोई चिरंतन स्वर्ग है और न ही चिरंतन नर्क।
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मैं भी स्वामी जी से प्रभावित यह सोचता हूं।
यद्यपि जब लोगों को संकुचित सोचते देखता हूं तो गुस्सा आता है। जब कि वह क्रोध भी निरर्थक है!

डा० अमर कुमार ने कहा…


बहुत बहुत धन्यवाद, पंडिज्जी !
मैं स्वनामधन्य विवेकानंद जी पर पोस्ट लिखने बैठा, आदतन बड़ी लम्बी हो गयॊ ! काट-छाँट न गवारा होते हुये भी, कभी यह करके अपनी पोस्ट दूँगा ! वह कालजयी हैं, हर दिन प्रासंगिक !
काश, कल किसी ने स्व० लालबहादुर शास्त्री को भी याद किया होता !
टेबल और बार्डर लगाना सीख गये हैं, लगता है । सादर अभिवान !

डॉ .अनुराग ने कहा…

निश्चित ही एक बहुत प्रांसगिक पोस्ट...ऐसे व्यक्तित्व अब शायद युगों तक ना मिले....ओंर ना ही अब आदर्श हकीक़त मे...

Abhishek Ojha ने कहा…

स्वामीजी में सप्तर्षियों के गुण विराजमान थे ! वो कलयुग में सप्तर्षियों के फ्यूजन ही थे.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

निश्चित ही स्वामी विवेकानन्द जी के विचारों में जीवन के मूल्यों के साथ-साथ सामाजिक एवं सांस्कृतिक पुनरूत्थान की चेतना के भी तत्व विद्यमान हैं।

विष्णु बैरागी ने कहा…

हम अपने 'महापुरुषों को' तो मानते हैं किन्‍तु 'महापुरुषों की' नहीं मानते। जब तक हम 'को' से मुक्‍त होकर 'की' से लिप्‍त नहीं होंगे तब तक उलझे हुए ही रहेंगे।

Udan Tashtari ने कहा…

विवेकानन्द साहित्य अद्भुत है. उसने मुझे हमेशा आकर्षित किया है. आपका आभार इस प्रस्तुति का.

बेनामी ने कहा…

स्वामी विवेकानंद के व्यक्तित्व और उनकी बातों ने हमेशा मुझे प्रेरणा दी है उनके बारे में लिखने के लिए बधाई

गौतम राजऋषि ने कहा…

स्वामी जी पर इस विशेष आलेख का बहुत-बहुत शुक्रिया द्विवेदी जी। सचमुच ही तो उन्होंने आध्यात्म और विज्ञान के मध्य की पतली रेखा को मिटा दिया...
धन्यवाद इद आदर्श की चर्चा के लिये

समयचक्र ने कहा…

jayanti ke avasar par apka aleekh sarahaniy hai .